1986 में बिहार के जहानाबाद जिले के कंसारा गाँव में घरेलू मारपीट के खिलाफ वहाँ पर औरतों ने घर का कामकाज बंद कर दिया। यह कोई बड़ी बात न होकर भी महत्वपूर्ण घटना बन गयी, जिसने घरेलू हिंसा की समस्याओं पर लोगों का ध्यान खींचा।
अपनी मेहनत के बदले न्यायोचित मजदूरी माँगने वाले और सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार मांगने वाले गरीब खेत-मजदूरों पर धनी किसान किस प्रकार अपना गुस्सा निकालते थे, कंसारा जैसे हत्याकांड इसकी मिसाल है। इस कांड से एक दिन पहले एक अमीर किसान विजय सिंह की हत्या हुई थी। फिर क्या था, धनी किसानों के हथियारबंद गुंडे कंसारा के पिछड़ी जाति (चंद्रवंशी-कहार) के गरीब खेत-मजदूरों पर टूट पड़े। दस लोगों की बर्बतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया। साथ ही गाँव में आग लगा दी गयी, जिसमें नौजवान भागने में तो सफल हुए लेकिन बुढ़े-बच्चे को काफी नुकसान हुआ।
जो पुलिस विजय सिंह की हत्या के मामले को लेकर तत्काल सक्रिय हो गई थी, उसी पुलिस ने कंसारा पहुँचने में 32 घंटे का समय लगा दिया। वह भी तब, जब गांव वालों ने पुलिस कार्रवाई की मांग को लेकर अरवल-जहानाबाद मार्ग जाम कर दिया था।
बिहार की वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक परिस्थिति में आज भी कुछ खास बदलाव नहीं हो पाया है। दबंगई और असामाजिक प्रवृत्ति के लोगों द्वारा पिछड़े वर्ग और दलितों के साथ वारदात की घटना एक सामान्य सी बात हो गई है। विपक्षी दल इन घटनाओं की निंदा में ध्यान केंद्रित करवाकर अखबारों में बड़े-बड़े सम्पादकीय लेख छपवाकर अपना राजनीतिक पहलू मजबूत करवा लेते हैं और फिर अगले कांड़ की प्रतीक्षा करने लगते है। पुलिस को जीभर कोसा जाता है। पूंजीपति किसानों या दबंगों द्वारा पैसे और समर्थन के बल पर मंत्री और सांसदों के पदों पर आसीन बुजुर्आ पार्टियों के नेता इन घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए घड़ियाली आँसू बहाकर दिखा देते हैं।
इस घटना के विरोध में चंद्रवंशी समाज द्वारा विधानसभा का घेराव किया गया और न्याय की माँग की गयी थी। लेकिन अफसोस, की जंगल राज में न्याय की मांग कर रहे सभी कार्यकर्ताओं पर पुलिसिया कार्रवाई करते हुए जेल में बंद कर दिया गया और उनके आवाज को डराने-दबाने के लिए उनपर कई तरह की धाराएँ लगा दी गयी।
— अमित राजन चंद्रवंशी