दो शब्द – समाजसेवी ई. ब्रजेश चंद्रवंशी – अमित राजन चंद्रवंशी के कलम से
समाजसेवी सोच के अलावे एक लेखक होने के नाते मुझे हमेशा ऐसा एहसास होता रहा कि हमारा इतिहास ही हमें सम्मान दिला सकता है क्योंकि आज अगर हम खुद को चंद्रवंशी या जरासंध वंशी कह पाते है तो इसका प्रमाण- ग्रंथ और जरासंध धरोहर आदि है। इसलिए हमेशा मैं उन चीजों की बात किया समाज में किया करता था। मेरी प्राथमिकता चंद्रवंशी से जुडी सभी धरोहरों को संरक्षित करना ही रहा।
2017 की बात है। एक वाह्टस एप ग्रुप में एक नये सदस्य का मैसेज देखा जिसने बडी ही बेबाकी से अपनी बात रखी और सभी सदस्यों को मोटिवेट करने के उद्येश्य से एक फिल्म (सत्या-2) देखने की बात कही। वैसे भी मैं अलग-अलग देशों कीखास और महत्वपूर्ण फिल्मों को ढूंढकर देखनेका शौकिन रहा हूँ, इसलिए उत्सुकतावश मैंने फिल्म देखी। वह फिल्म मुझे ज्यादा खास तो नहीं लगी लेकिन एक बात मुझे लगा कि इस बंदे में कुछ तो बात है। उन दिनों मैं जरासंध अखाडे को लेकर पुराने समाजसेवियों से बातचीत करता रहता था, लेकिन कुछ खास सहयोग प्राप्त नहीं हो पा रहा था। मैं एक बात समझ चुका था कि मेरे अभियान में शिक्षित और क्रांतिकारी चंद्रवंशी की ही आवश्यकता है।

फिल्म देखने के बाद मैंने उस नये सदस्य को पूरा परिचय देने के लिए मैसेज किया तो पता चला कि उनका नाम ब्रजेश चंद्रवंशी है और पेशे से एक इंजिनियर है। मुझे जैसे कोई उम्मीद की किरण मिल गयी। क्योंकि एक इंजिनियर में वो खासियत होती है कि बिगडे या बिखरे हुए चिजों को सवारकर नया रूप या ऊर्जा दे सके। उस समय इंजिनियर की आवश्यकता इसलिए थी क्योंकि डिजिटल युग में एक मोबाईल ऐप या बेवसाइट से लोगों को जोड पाना आसान था। उसी ग्रुप में एक और ऊर्जावान सदस्य विशाल भूषण, जिनसे पहले से बातचीत होते आ रही थी, को फोनकर ब्रजेश चंद्रवंशी के बारे में बताया। फिर हम तीन लोगों का एक नया वाह्टस एप ग्रुप बना, जहाँ पर आगे की रणनीति तय होना शुरू हो गया। समय बीतता गया और तैयारियां मजबूत होती गयी। इंजिनियर का दिमाग और टेक्नोलॉजी, एक समाजसेवी और लेखक की विचारधारा और जोशिले व्यक्तित्व युवा के सहयोग ने फेसबुक के माध्यम से नयी क्रांति का आगाज कर दिया और 13 मई 2018 राजगीर में एक सम्मेलन प्रस्तावित किया गया। इस क्रांति की नींव युवाओं द्वारा रखी गयी थी इसलिए लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि युवा सम्मेलन होने जा रहा है। लोगों की लोकप्रियता के आधार पर उस कार्यक्रम को युवा सम्मेलन नाम दिया गया।
युवाओं के पुकार पर देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों से युवा, बुजुर्गों का पूरा सहयोग प्राप्त हुआ और मीटिंग सफल रही। इस सफलता ने हमारी टीम को नयी ऊर्जा मिली और उसके बाद कभी रूके नहीं। मैंने ब्रजेश चंद्रवंशी में गजब का उत्साह देखा। एक इंजिनियर होने के बावजूद उनकी सहनशीलता औरनिर्भिकता ने मुझे उनका कायल बना दिया। एक-दो बार मैं खुद असमाजिक तत्वों और विपरीत विचारधारा से ऊबकर थोडे समय के लिए खुद को दरकिनार कर लिया लेकिन हरबार ब्रजेश चंद्रवंशी के हौसले, प्रेरणा और अपनापन ने मुझमें जोश भरकर पुनः समाज के लिए उत्साहित कर दिया।आईसा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष विजय सिंह कश्यप जैसे शुरूआती क्रांतिवीर सहयोगी और समय-समय पर इस अभियान में अच्छे लोगों का सहयोग मिलता गया। आज ब्रजेश चंद्रवंशी के जुनून का फल है कि चंद्रवंशियों का एक बडा प्लेटफॉर्म ऑल इंडिया चंद्रवंशी युवा के नाम से पूरे भारतवर्ष में लोकप्रियता हासिल कर रहा है जिसे लोग प्यार से AICYA कहकर भी बुलाते हैं।

समाज और संगठन में कई उतार-चढाव को सहते हुए ब्रजेश चंद्रवंशी ने समाज को जो ऊर्जा और नेतृत्व प्रदान किया है, उसे चंद्रवंशी समाज हमेशा याद रखेगा। मैं एक सहयोगी के तौर पर हमेशा ब्रजेश चंद्रवंशी का साथ देता रहूंगा ताकि समाज नयी उडान की गाथा लिखता रहें। मैं ब्रजेश चंद्रवंशी का इसलिए भी समर्थक हूँ क्योंकि उन्होंने जो जोश और विश्वास समाज में स्थापित करने में भूमिका निभाई हैं, उसे मैं कम होने नहीं देना चाहता।
दो शब्द मैं उनके लिए जरूर कहना चाहूंगा-
मत कर परवाह उनकी, जो आज देते है ताना ।
झुका देंगे वही सर, जब आएगा तेरा जमाना ।।
लहरें बुनती है तुफां, फिर भी कश्ती का काम है बहना।
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।।